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Sunday, November 28, 2010

आज भी वो जम्मू उच्न्ययालय  के सामने
बैठ कर भिक्षा मांगती है
कुछ अजीब कुछ अलग  प्रकिर्ति है उसकी
 वह और भी कई भिक्षा याटन करते है
पर उसकी आवाज उसकी अंदाज़
कुछ अलग कुछ अजीब
कोई कहै अल्लाह के नाम पर दे दो
कोई कहता राम के नाम पर दे दो
कोई चंद रुपयों के लिए
अपने मधुर संगीत के तन को छेड़ता
पर वो कुछ ना कहती
उसका मार्मिक चेहरा
कुछ और इशारा कर जाता
पता न चलता की आक्रोश है या दया
पर कुछ तो न्याय चाहती है  वो 
एक कटोरे को अपने सामने रख
एक टक लगाये रखती न्यायालय   
ना कुछ कहती ना कुछ सुनती
बस कभी कभी आँखों को नाम करते देखा है
ना जाने कौन सा न्याय चाहती है
रहा ना गया मुझसे
आखिर पूछ ही बैठा
माँ कोई बात है जो तुम कहना चाहती हो
या किस दर्द के मार सहे बैठी हो तुम
उसने मझे उत्तेर दिया
उत्तर था या विद्रोह वाणी ना चला
उसने बताया" वो भी कभी महलो में रहती
अलगाववादी दंगे में सब कुछ खो बैठी
पति का प्यार बेटे का दुलार
पूरा परिवार जो था उसका संसार
लुट गया सब उस दंगे में
पहले तो परयत्न  किया काफी
कि मांगू न्याय मै

पर न्याय मांगती तो किसके लिए
न्याय तो ना मांग सकी पर सुब कुछ खोकर
ये कटोरी जरुर मिली
जो अब मेरे जीवन  का सहारा है
बस  यही तो है जिसने मेरे साथ न्याय किया"
विद्रोह वाणी सुन कर खड़ा  हुआ
और चल बैठा वहा से
ह्रदय में बस यही गूंजता रहा
आज भी वो जम्मू उच्न्यय्यालय  के सामने
बैठ कर भिक्षा   मांगती
 कुछ अलग कुछ .........................

Saturday, November 27, 2010

आखिर मैं आया क्यों

बहुत हंसी - खुशी का  दिन था वो
जब आया इस संसार में
आया था वो रोते रोते
पर न जाने क्यों
उसके आस पास के
सभी लोग हँस रहे थे
वो रो रहा था
क्यों  रो रहा था पता न चला
सामने कई लोग खड़े थे
सबसे पहले एक आवाज आई 
इंजिनियर बनेगा मेरा बेटा
तभी बगल से आवाज आई
ना जी ना  मैं  तो इसे  गायक बनाऊंगी
ताऊ ताई भी सामने खड़े थे
आखिर उन्होंने भी अपनी इच्छा  बता ही दी
"कलक्टर बनायेंगे इसे हम"
बच्चे की रोने की आवाज़ और भी तीखी हुई
 पर  पता नही क्यों

बच्चा बड़ा हुआ
सूरज नाम था उसका
स्वभाव और गुण भी सूरज की तरह
कुछ नयी सोच लेकर आगे बढा
पर रुकना पड़ा
पिता जी ने रस्ते में ही रोक दिया
गायक सह कवि बनना चाहता था
दुनिया वालो की गढ़ी लीक पर ना चल कर
एक अपनी लीक बनाना चाहता था
पर इंजिनियर जो बनना था उसे

पढाई का बोझ अच्छे स्वभाव का बोझ
अपने कुल की मर्यादाओ का बोझ
ना जाने और क्या -क्या
बड़ा हुआ इंजिनीयर   तो बना
पर पछताता रहा जीवन भर
ब्याह हुई परिवार बढा बोझ भी बढा
आखिरकार उसने सोचा
कब जिया मैंने अपने ज़िन्दगी को
आखिर इसलिए मिली थी मुझे ये
दुनिया के बनायीं लीक पर चलता रहा
कुछ नया सोचना विद्रोह था
कुछ नया  सोचना पाप था
फिर से रो उठा वो
पर आज पता चला" वो रोया क्यों
और रोते हुए क्यों आया था "............

Thursday, November 11, 2010

आखिर जीवन क्या है

आखिर जीवन क्या है???
क्या आपने कभी इस पर सोचा
आखिर जीवन आपको मिला क्यूँ
क्या आपने कभी इसको महसूस  किया

कई बार सुना
जीना तो है दुसरो के लिए
पर क्या आपने कभी
 इसका सार्थक अर्थ जानने का प्रयास किया

आना है दुनिया में रोते रोते
जाना भी है रोते रोते
पर क्या आपने कभी
इसका कारण जानने का प्रयास किया
फैसला अब आपके हाथ  में  है
की आपके जीवन का प्रदीप क्या है
जीवन है ये आपका या किसी और का
मुस्कान आपको  अपने चेहरे पे लानी  है
या दुसरो के जीवन में
मुस्कान की चमक बिखेरनी है

जीवन आपका है तो लड़ाई   भी आपकी है
लड़ोगे आप महलो के लिए
या फिर झोपड़पट्टी   में रहकर भी
महलो के  सपने देखने वालो के लिए

आप आये  हो अकेले तो
फैसला भी आपको अकेले ही करना होगा
की आखिर  जीवन क्या है
लरना है आपको  अपने सोच से या
सामाजिक कुपर्थाओ  से
फैसला अब आपके हाथ में है
की जीवन क्या है

Wednesday, November 10, 2010

aakhir sangharsh hai kya

आखिर संघर्ष है क्या???
जीवन को सुखमय बनाने का जज्बा
या फिर किसी से आगे निकलने होड़

कई बार सुना संघर्ष ही तो ज़िन्दगी है
पर आखिर संघर्ष है क्या
अपने परिवार का पेट भरने के लिए
अपने रक्त को पसीने की तरह बहाना
या फिर अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए
अपने जीवन को कुर्बान कर जाना

ज़िन्दगी तो चार दिनों की है
पांचवे दिन मौत आएगी
ये सोच कर आंसू बहाना
या फिर इन्ही चार दिनों
ओ प्रकाशमय बनाने में
अपने जीवन को बिताना
आखिर संघर्ष है क्या???

ह्रदय बार बार हुँकार भरता है
भूखे बछो को जूठा  खाते देख
तब ये दिल पुकार उठता है क्या यही संघर्ष है
अपने जीवन को बिताने का

आप ही आप में लड़ते है आप
क्या तोर दू सामाजिक बन्धनों को
क्या तोर दू सामजिक कुरीतियों के बन्धनों को
 जो हमारे समाज के लिए अभिशाप बन गयी है
क्या तब भी आप नही सोचते की
क्या यही संघर्ष है????????

KYA SWTANTRA HAI MERA BAHRAT

स्वतंत्र है मेरा भारत
पर क्या स्वतंत्र है यहाँ के लोग
किसी को भ्रस्ताचार   ने मारा तो
किसी को भूख  ने
कोई धर्म के नाम पर लड़े  तो
कोई लड़े रुपयों के लिए
भाई भाई को कटे
घर को बना दे शमशान
फिर भी लोग शान से कहते है
ये है मेरा है भारत महान
याद करो  उन बलिदानों को
जिन्होंने किया अपना सर्वस्वा 
अपने मातृभूमि के नाम
वे न लड़े  रुपयों के लिए
ना लड़े  पैसो के लिएम
ना लड़े   वे जाती धर्म के लिये
वे लड़े  तो बस एक शांति पूर्ण भारतवर्ष  के लिये
क्या यही है उनके सपनो का भारत
स्वंत्रता के ६३ वर्षो बाद भी
क्या है स्वतंत्र मेरा भारत?
पुछो पूछो अपने ह्रदय से पूछो
लाखो बच्चे भूखे सोते
भ्रस्ताचार के गुण तो हम
गा गा कर रोते
लाखो लोग घूमते बिना कम  के
बहकावे में आकर बन जाते है
मातृभूमि के भक्षक बड़े शान से
प्रशासन ही करता जा रहा है कुशासन
कभी खादी करे घोटाला तो
कभी  खाखी बन जाये जिम्मेदार
इस देश को बनाने में शमशान
फिर भी लोग शान से कहते है
ये है मेरा भारत महान
पुछ पूछ कर थक गया मै
स्वतंत्र है मेरा भारत पर क्या स्वतंत्र है
यहाँ के लोग

YADAIN

अब तो यही तेरी ज़िन्दगी बन गयी है राजन
कभी गुज़रती है यादों के गलियारों से तो
कभी किसी के  सपनो से
बस ज़िन्दगी का हर एक लम्हा याद बनता जा रहा है
दोस्तों के साथ बिताये जा रहे पल फरियाद बनता जा रहा है
आँखों को नम कर के भी कितनी ख़ुशी देती है वो यादें
जब आए थे ओ पल न जाने कितनी ख़ुशीया
पता न था की आज वो मीठे दर्द बन जायेंगे

इन आखो को तो भरोसा भी न था की ये कुछ इस तरह बह जायेंगे
बहुत याद आते है वो लम्हे
बहुत तद्पाते   है वो लम्हे
काश कोई जादू की छड़ी  होती  हाथो में
फिर लौटा देता उन लम्हों को
पर क्या करे?
जीना तो है इन्ही  यादों के साथ
शायद  इस राहगीर का सुकून बन जाये
और चलता रहू इन यादों के साथ
ये हसीं भी है पर मीठे दर्द  के साथ कैसे छोड़  दू इन्हें
इसी ने तो मुझे एक नया पल दिया  इसी ने तो मुझे एक नया कल दिया.................

कैसे चुकाएं इस क़र्ज़ को

कभी कभी ईश्वर
कुछ अजीब ही करामात करता है

बात करते हैं
एक पिता की ही
आज भीं वह  बरामदे में सोते हैं
अपने  आँखो में अनेक सपनों को लिए
हजारो दर्द सह कर भी
विचलित न होते

दिन रात  पसीने को बहा कर
 मन मन ही मन में सोचते
बाहर पढ़ रहे बेटे को
चलो इस बार ज्यादा पैसा  भिजवा दूंगा
हजारो दर्द सह कर भी
बेटे को बाहर पढ़ाते
शायद सपने  में भी न सोचा हो
कि  बुढ़ापे को सुखमय बनायेंगे मेरे लाल
अपने आप को कर के बेहाल

बच्चो के  भविष्य को करते जा रहे हैं  मालामाल
पर पुकारता है ये ह्रदय
क्या अदा कर पायेंगे
उनके बच्चे कभी  इस क़र्ज़ को
क्या निभा पायेंगे
वे अपने फ़र्ज़ को
क्या दे पायेंगे
अपने पिता को वो
आराम जो उन्हें
अभी करना चाहिए था
क्या होगा बुढ़ापे में उन्हें
महलों की खुशियां देकर
बार  बार ये हृदय पुकार उठ ता है
क्या उतार  पायेंगे उनके बच्चे
अपने पिता के  कर्ज को ...............