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Saturday, November 27, 2010

आखिर मैं आया क्यों

बहुत हंसी - खुशी का  दिन था वो
जब आया इस संसार में
आया था वो रोते रोते
पर न जाने क्यों
उसके आस पास के
सभी लोग हँस रहे थे
वो रो रहा था
क्यों  रो रहा था पता न चला
सामने कई लोग खड़े थे
सबसे पहले एक आवाज आई 
इंजिनियर बनेगा मेरा बेटा
तभी बगल से आवाज आई
ना जी ना  मैं  तो इसे  गायक बनाऊंगी
ताऊ ताई भी सामने खड़े थे
आखिर उन्होंने भी अपनी इच्छा  बता ही दी
"कलक्टर बनायेंगे इसे हम"
बच्चे की रोने की आवाज़ और भी तीखी हुई
 पर  पता नही क्यों

बच्चा बड़ा हुआ
सूरज नाम था उसका
स्वभाव और गुण भी सूरज की तरह
कुछ नयी सोच लेकर आगे बढा
पर रुकना पड़ा
पिता जी ने रस्ते में ही रोक दिया
गायक सह कवि बनना चाहता था
दुनिया वालो की गढ़ी लीक पर ना चल कर
एक अपनी लीक बनाना चाहता था
पर इंजिनियर जो बनना था उसे

पढाई का बोझ अच्छे स्वभाव का बोझ
अपने कुल की मर्यादाओ का बोझ
ना जाने और क्या -क्या
बड़ा हुआ इंजिनीयर   तो बना
पर पछताता रहा जीवन भर
ब्याह हुई परिवार बढा बोझ भी बढा
आखिरकार उसने सोचा
कब जिया मैंने अपने ज़िन्दगी को
आखिर इसलिए मिली थी मुझे ये
दुनिया के बनायीं लीक पर चलता रहा
कुछ नया सोचना विद्रोह था
कुछ नया  सोचना पाप था
फिर से रो उठा वो
पर आज पता चला" वो रोया क्यों
और रोते हुए क्यों आया था "............

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