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Sunday, May 15, 2011

ठहाकों में से आई एक आवाज 

बातों ही बातों  में ठहाके लग रहे थे 
उन्हीं ठहाकों में से एक आवाज आई 
भाई मुझे कैंसर है 
चोंक कर भौचक्का रह गया मै
निहारता रहा उसे कुछ देर तक 
पर सोचता हूँ -
कभी- कभी मुसीबतें भी 
इन्सान को कितना मजबूत बना देती है 
हँस -हँस कर वो  अपनी दवावों  के बारे में बताने लगा 
मानों किसी मीठे दर्द को पी रहा  हो 
उसके आँखों में तो नहीं
पर उसके आवाज में आंसू जरुर थे 
और उनकी मर्म व्यथा को महसूस कर 
ह्रृदय  रो रहा था
ह्रदय में ये पल -पल चाह पुलकित हो रहे थे  की 
लगा लूँ उसे गले और 
दे दू उसे एक जादू की झप्पी 
पर उसके आँखों में मैं  आसूं नहीं देखना चाहता था 

कभी कभी मुसीबतों पर 
हँसते -खेलते रहने का मरहम भी कारगर होता है
सुना था कहीं
पर उसे सामने मुस्कुराते देख 
उस तथ्य को को महसूस कर रहा था 
मुसीबतों के इस पहाड़ को   हँसते- हँसते उठाना 
 हम आम साथियों से उसमे  कुछ विशिस्ट   दर्शा रही थी
आप ही सोचों आप को कैंसर हो 
और आप मुस्कुरा   रहे हो .....

बार बार ह्रदय से बस एक ही  पुकार
हे परमेश्वर उसकी रक्षा करना 
हे जगतेश्वर उसकी रक्षा करना 
हे परम पिता उसकी रक्षा करना 
एक परीक्षा तो ले  ली  आपने
अब आगे और न लेना .........