बातों ही बातों में ठहाके लग रहे थे
उन्हीं ठहाकों में से एक आवाज आई
भाई मुझे कैंसर है
चोंक कर भौचक्का रह गया मै
निहारता रहा उसे कुछ देर तक
पर सोचता हूँ -
कभी- कभी मुसीबतें भी
इन्सान को कितना मजबूत बना देती है
हँस -हँस कर वो अपनी दवावों के बारे में बताने लगा
मानों किसी मीठे दर्द को पी रहा हो
उसके आँखों में तो नहीं
पर उसके आवाज में आंसू जरुर थे
और उनकी मर्म व्यथा को महसूस कर
ह्रृदय रो रहा था
ह्रदय में ये पल -पल चाह पुलकित हो रहे थे की
लगा लूँ उसे गले और
दे दू उसे एक जादू की झप्पी
पर उसके आँखों में मैं आसूं नहीं देखना चाहता था
कभी कभी मुसीबतों पर
हँसते -खेलते रहने का मरहम भी कारगर होता है
सुना था कहीं
पर उसे सामने मुस्कुराते देख
उस तथ्य को को महसूस कर रहा था
मुसीबतों के इस पहाड़ को हँसते- हँसते उठाना
हम आम साथियों से उसमे कुछ विशिस्ट दर्शा रही थी
आप ही सोचों आप को कैंसर हो
और आप मुस्कुरा रहे हो .....
बार बार ह्रदय से बस एक ही पुकार
हे परमेश्वर उसकी रक्षा करना
हे जगतेश्वर उसकी रक्षा करना
हे परम पिता उसकी रक्षा करना
एक परीक्षा तो ले ली आपने
अब आगे और न लेना .........